Rajani katare

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जिज्ञासा मन की


 "जिज्ञासा मन की" वर्ण पिरामिड

मैं
जीव
जिंदगी
शुरु होती
पैदा होते ही
प्रति पल क्षण
आते जाते विचार
प्रस्फुटित होते
अन्तर्मन में
असीमित
विचार
कैसे
ये
मन
आश्चर्य
चकित हो
संशय में हूँ
दुनिया का मेला
सोचता विचारता हूँ
मिथ्या ये जगत
अद्भुत शक्ति
काल्पनिक
दिखता 
कैसा 
है
मेरी
प्रवृत्ति
जिज्ञासु है
मैं निरुत्तर हूँ 
कुछ हठी भी हूँ
कौन कैसा कहाँ है
जिज्ञासा मेरी है
पता बता दे 
शक्ति कोई
अद्भुत
कैसी
है ।

काव्य रचना-रजनी
   जबलपुर म.प्र.

नोट- बढ़ते घटते क्रम में भावपूर्ण,
       1 से 7 अक्षर 🙏

प्रतियोगिता हेतु

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7 Comments

Niraj Pandey

23-Mar-2022 09:48 AM

बहुत खूब

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Punam verma

23-Mar-2022 09:13 AM

Very nice mam

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Abhinav ji

23-Mar-2022 08:44 AM

अद्भुत कला

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